Sunday, June 28, 2009

ताप !!!

तुम दिन में आग फूकने लगे...
जमीं के होठ भी सूखने लगे...

मुरझा गए इन बगीचों के चेहरे...
समंदर भी बूँद को टूकने लगे...

प्यास अब साँसों को लग रही ...
खून के गुब्बारे भी फूटने लगे...

दिन से तो कब से नाराज़ थे वो...
बच्चे अब रातो से भी रूठने लगे...

अमुयें कि छाया भी धधक रही...
कच्चे आम भी साखो से टूटने लगे...

रास्ते है जल रहे मंजिले सुलग रही...
हौसलों के इरादे भी छूटने लगे...

तुम दिन में आग फूकने लगे...
जमीं के होठ भी सूखने लगे...

भावार्थ
२७ जून २००९
तापमान: ४८ डिग्री सेल्सिउस

एहसास !!!

आज हमारे इंसान होने का एहसास मर चुका है...
औरो के लिए जीने का दौर कबका गुजर चुका है...

भीड़ में तरसते रहते हैं लोग हमसफ़र के लिए...
तन्हाई में रोते हुए गला इनका भी भर चुका है...

घर, कार और बाज़ार में है इतना उलझा हुआ...
इक इक सिरा जिंदगी का धागे सा उजर चुका है...

मोबाइल, ऐ.सी,इंटरनेट बिना जिंदगी अधूरी है...
ख़ुद के इजात चीजों से पंख ख़ुद के कुतर चुका है...

अपनी B.H.K में सब जिन्दा हैं यु तो कहने को...
मगर ख़बर नहीं उनको कि पड़ोसी मर चुका है...

भावार्थ

Wednesday, June 24, 2009

तू !!!

तुझसे मिल कर ये जाना है कि जन्नत क्या है...
दुआएं क्या हैं और मांगी हुई मन्नत क्या हैं...

लम्हे भी जिंदगी जीते है जब तू होती है...
चराग बुझ जाते हैं रौशनी इतनी होती है...

हर बाब में मेरे दिल के सिर्फ़ तेरा जिक्र है...
भूल गया खुदा को, ख़ुद को सिर्फ़ तेरी फ़िक्र है....

बूँद से कहीं नाज़ुक हो, ओस से भी नवेली हो...
मोहब्बत में लिपटी निशानी कोई अलबेली हो...

ओज क्या है, निखत क्या है, ये रंगत क्या है...
तुझसे मिलकर ये जाना है कि जन्नत क्या है...

भावार्थ...

पहेली !!!

यु तो जिंदगी एक पहेली है...
मगर मैं फ़िर भी इसे सुलझाने निकल पड़ा...
जिंदगी एक राह सी है....
हार और जीत इसके दो पत्थर हैं...
जो बीच बीच मैं गढे हैं...
इंसान इनके बीच उम्मीद लिए फिरता रहता है...
अपनों से बंधा कभी जन्नत देखता है...
कभी उन्ही से खफा तनहा बैठता है...
बेगानों से यु तो उसे कोई मेल नहीं है...
पर दोस्त, हमसफ़र,राज दार उसे इन्ही मैं मिलते हैं...
अपने और बेगानों की दूरी सिर्फ़ जेहेन में है असल में नहीं...
पर फ़िर सोचता हूँ की इसमें सपने भी हैं,
चाहत भी है, कुछ कर गुजरने की तमन्ना भी है...
तो ये जिंदगी इक राह भर नहीं है...
ये जिंदगी एक नाव है...
जो समय में तेरती रहती है...
समय एक ऐसा दरिया है जिसमें बहाव बढ़ता जाता है...
हिलोरे तो आती है जाती हैं, मगर बहाव धीमे धीमे...
उसे उसी दरिया में डुबो देता है जिसमें वो तैरने निकली होती है...
उसमें सवार उस जिंदगी के कई तिनके एक एक कर...
उस नाव को छोड़ देते हैं तो नए तिनके किनारों से निकल...
उसके साथ साथ बहने लगते हैं...
नाव पुराने तिनको को भूल नए तिनको से जुड़ जाती है...
भूलने और जुड़ने के दौर में कब वो डूब जाती है....
उसको ख़बर भी नहीं होती, बस एक मलाल होता है...
की ऐ काश !! वो तिनके जो उससे जुड़े थे उसके साथ ही रहे होते...
जिनको उसने अपना कहा उसके साथ ही बहे होते...
नाव को ये हकीकत भी सामने आई...
की हिलोरे एहसास हैं, हकीकत नहीं...
एहसास जो हमारे जेहेन में बुना जाता है...
एक लम्हे भर की जिंदगी है...
नाव है जिंदगी या फ़िर राह कोई नवेली है...
में हार गया जिंदगी आज भी एक पहेली है...

भावार्थ...

Tuesday, June 23, 2009

इश्क मुझको नहीं !!!

इश्क मुझको नहीं, वेह्शत ही सही
मेरी वेह्शत तेरी शोहरत ही सही

कट्टा कीजे न ताल्लुक हमसे
कुत्च नहीं है तो अदावत ही सही

मेरे होने में है क्या रुसवाई
ऐ वेह मजलिस नहीं खल्लत ही सही

हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
गैर को तुझसे मोहब्बत ही सही

अपनी हस्ती हे से हो जो कुछ हो
आगाही गर नहीं गफलत ही सही

उम्र हरचंद की है बर्के-खरं
दिल के खून की फुर्सत ही सही

हम कोई तरके-वफ़ा करते हैं
न सही इश्क मुसीबत ही सही

कुछ तो दे ऐ फाल्के-न-इन्साफ
आहो फरियाद की रुखसत ही सही

हम भी तस्लीम की खू डालेंगे
बेनयाज़ी तेरी आदत ही सही

यार से छेड़ चली जाए 'असद'
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही

..मिर्जा गालिब

Sunday, June 14, 2009

न कर पाओगे !!!

मेरी हस्ती मेरी पैरहन भर है दुनिया वालो ...
इसको मिटाओगे मुझको न मिटा पाओगे...

पाव भर भुने चने मेरे बस्ते में रहते हैं...
चाहोगे भी तो खाने में जहर न मिला पाओगे...

सिर्फ़ तन्हाई मेरी अपनी है इस दुनिया में ...
मेरी दुनिया चाह कर भी न मिटा पाओगे ...

बेचिराग जिंदगी मैंने युही जी है अब तक...
खौफ अंधेरे का मुझको न दिखा पाओगे...

मैं नसीब अपना माथे पे लिए फिरता हूँ...
मजहबी रंग कोई मुझपे न चढा पाओगे...

अज़ल को मैंने करीब से देखा है लोगो...
मौत का मंजर मुझको न दिखा पाओगे...

भावार्थ...

Friday, June 12, 2009

सुबह !!!

कोई आया और सुबह सुबह धुप बो गया...
सिली सिली सी सुबह उबलने लगी...
फुदकते लोग, चहकते पंछी,मचलते हौसले...
कुछ एक पल को थम गए...
यकायक ही बादल नरेश गुजरे ....
बड़ी सी परछाई लाये...
और सुबह को उढा दी पूरी की पूरी...
फुदकते लोग,चहकते पंछी,मचलते हौसले...
कुछ एक पल को जी गए...

भावार्थ

जब मुकद्दर बन के मिलता है !!!

वो जो मेरे खयालो में हर पल रहता है।
वही मुझसे अजनबी बन के मिलता है।

रातें सदियाँ बन जाती हैं जिसके लिए।
वो मुझसे एक लम्हा बन के मिलता है।

जिंदगी जब एक तमन्ना बन के जीती है।
वो मुझसे एक हादसा बन के मिलता है।

में जिसके लिए दुनिया के दुःख पी बैठी।
वो मुझे मोड़ पे 'जोगी' बन के मिलता है।

किस्मत कोसूं तो कभी कोसूं ख़ुद को।
वो मुझे मिलता है मुकद्दर बन के मिलता है।

भावार्थ...

Thursday, June 11, 2009

हमने देखि है उन आंखों की महकती खुशबू
हाथ से छु के इससे रिश्तों का इल्जाम न दो...
सिर्फ़ एहसास है यह, रूह से महसूस करो ...
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो...
हमने देखि है उन आंखों की महकती खुशबू
हाथ से छु के इससे रिश्तों का इल्जाम न दो …

हमने देखि है उन आंखों की महकती खुशबू
प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं
एक खामोशी है, सुनती है कहा करती है...
n यह बुझती है, न रूकती है, न ठहरी है कहीं
नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है
सिर्फ़ एहसास है यह, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो…

हमने देखि है....
मुस्कराहट से खिली रहती है आंखों में कहीं...
और पलकों पे उजाले से रुके रहते हैं...
होंठ कुछ कहते नहीं, कांपते होंठों पे मगर...
कइतने खामोश से अफसाने रुके रहते हैं...
सिर्फ़ एहसास है यह, रूह से महसूस करो...
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो...
हमने देखि है उन आंखों की महकती खुशबू...
हाथ से छु के इससे रिश्तों का इल्जाम न दो...
हमने देखि है…

gulzaar

Wednesday, June 10, 2009

अलाव...गुलज़ार

रात भर सर्द हवा चलती रही।
रात भर हमने अलाव तापा।
मैंने माजी से कई खुश्क सी शाखिएँ काटी।
तुमने भी गुजरे हुए लम्हों के पत्ते तोडे।
मैंने जेबों से निकाली सभी सुखी नज्मे।
तुमने भी हाथों से मुरझाये हुए ख़त खोले।
अपने इन आंखों से मैंने कई मांजे तोडे।
और हाथों से कई बासी लकीरें फेंकी तुमने।
पलकों पे नमी सूख गयी थी, सो गिरा दी।
रात भर जो भी मिला उगते बदन पर हमको।
काट के दाल दिया जलते अलावों मैं उसे।
रात भर फूंकों से हर लौ को जगाये रखा।
और दो जिस्मों के इंधन को जलाये रखा।
रात भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हुमने।

गुलज़ार...

Monday, June 8, 2009

अपनी दुनिया !!! साहिर लुधियानवी...

अपनी दुनिया पे सदियों से छायी हुई संगदिल रात है।
यह न समझो की ये आज की बात है।
जब से दुनिया बनी जब से धरती बसी।
हम युही ज़िन्दगी को तरसते रहे।
मौत की आंधियां घिर के छाती रहीं।
आग और खून के बादल बरसते रहे।
तुम भी मजबूर हो हम भी मजबूर हैं।
क्या करें यह बुजुर्गो की सौगात है।

हम
अंधेरे की गुफाओं से निकले मगर।
रौशनी अपनी सीनों से फूटती नहीं।
हमने जंगल सहरो में बदले मगर।
जंगल की तहजीब हमसे छूटती नहीं।

अपनी
बदनाम इंसानियत की कसम।
अपनी हैवानिउयत आज तक एक साथ है।
हमने सुकरात को जेहर की भेट दी।
और ईसा को सूली का तोहफा दिया।
हमने गाँधी के सीने को चलनी किया।
केनेडी को जावा खून से नहला दिया।

साहिर लुधियानवी...

Sunday, June 7, 2009

क्या करुँ !!!

लम्हों से बनती है जिंदगी...2
मुझे यादें बनाना आता नहीं...२
तुम ही बताओ में क्या करुँ...

सदा मुस्कुराओ कहते हैं सब...२
युही मुस्कुराना आता नहीं...२
तुम ही बताओ में क्या करुँ...

दिल में है मेरे जो एहसास ....२
उनको जाताना आता नहीं...२
तुम ही बताओ में क्या करुँ...

दर्द है दिल में मेरे ये इतना...२
अश्क बहाना आता नहीं...२
तुम ही बताओ में क्या करुँ...

लम्हों से बनती है जिंदगी...२
मुझे यादें बनाना आता नहीं...
तुम ही बताओ में क्या करुँ...

भावार्थ...

Tuesday, June 2, 2009

जनवरी आ गई !!!

आसमान गिर गया आख़िर ...
अब्र मेरे पार्क में आ ठहर गए हैं ...
सूरज को मौत दे दी शायद ...
लैंपपोस्ट रौशनी के घर बन गए हैं ...

जनवरी आ गई !!!

भावार्थ...

Monday, June 1, 2009

बस यही सवाल है !!!

तुम से दिल की कही कहूं...
या बनी रहूँ अजनबी कोई...
बस यही सवाल है...

तेरे
सपनो की चादर ओढूँ ...
या जिंदगी बना जी लूँ तुझे...
बस यही सवाल है...

तेरे
एहसासों को दिल में रखूँ...
या तेरे साथ हर लम्हा जियूं...
बस यही सवाल है...

जो है मन में उसे ख़त में लिखूं...
या उन लिखे खतो को तुझे भेजूं...
बस यही सवाल है...

अश्क तेरी यादो में बहाऊँ...
या तेरी नजरो में बस जाऊं...
बस यही सवाल है...

भावार्थ...