Saturday, July 31, 2010

मेरी जिंदगी है नगमा

मेरी जिंदगी है नगमा ...
मेरी जिंदगी तराना...
में सदा-ए-जिंदगी हूँ...
मुझे ढूढ़ ले जमाना...

मेरी जिंदगी है नगमा ...
मेरी जिंदगी तराना...

में किसी को क्या बताऊँ...
मुझे याद कुछ नहीं है...
रह रह गयी बिछुड़ के...
मेरी साख-ए-आशियाना...

मेरी जिंदगी है नगमा ...
मेरी जिंदगी तराना...

मेरे दिल की धड़कने हैं...
तेरे बचपन की यादें...
ये कहीं कहीं से अब तक...
मुझे याद है फ़साना...

मेरी जिंदगी है नगमा ...
मेरी जिंदगी तराना...

मेरी सोज में तबस्सुम...
मेरी आह में तरन्नुम ...
मेरा काम चलते रहना ...
युही दर्द-ए-दिल छुपाना...

शेवेन रिज़वी...

तुझे प्यार करते करते !!!

तुझे प्यार करते करते मेरी उम्र बीत जाए...
मुझे मौत भी जो आये तेरी बाजुओं में आये...

मुझे आज मिल गयी है मेरी चाहतों की मंजिल...
मुझे वो ख़ुशी मिली है की नहीं है बस में ये दिल...
मुझे आरजू थी जिनकी वो खुदा ने दिन दिखाए...

तुझे प्यार करते करते मेरी उम्र बीत जाए...
मुझे मौत भी जो आये तेरी बाजुओं में आये...

में जहां की सारी खुशियाँ तेरे नाम पे लुटा दूं...
तू कहे तो खून-ए-दिल से तेरी जिंदगी सजा दूं...
तुझे कोई गम ना आये तू हमेशा मुस्कुराये...

तुझे प्यार करते करते मेरी उम्र बीत जाए...
मुझे मौत भी जो आये तेरी बाजुओं में आये...

तेरा नाम ले कर जीना तेरा नाम ले कर मरना...
तेरे बंदगी यही है तुझे यु ही प्यार करना ...

तुझे क्यों न इतना चाहूँ तू ख़ुद को भूल आये...
तुझे प्यार करते करते मेरी उम्र बीत जाए...
मुझे मौत भी जो आये तेरी बाजुओं में आये...

मशरूर अनवर...

Thursday, July 22, 2010

आस !!!

दमन फैला के बैठा है वो...
सोचता है की तारे आ गिरेंगे...
सहमी सी रात कब तक रखेगी...
पेट से लटकाए इन तारों को...
खौफ में लहूँ आँखों से आ निकलता है...
कितने कदम और चलेंगी साँसे..
कितने पहर और चलेगी जिंदगी...
कितनी दफा दिया बुझ के जलेगा ...
बस सिर्फ राख में आग की सी आस है....
कहीं दबी दबी सी लगी है...
सिर्फ इसीलिए दामन फैला के बैठा है वो...

...भावार्थ

Sunday, July 18, 2010

हाफ कट चाय !!!

सुबह की उबासी तभी जाती है...
जब हाफ कट चाय लब छूती है...
स्वाद कहाँ से आता है पता नहीं...
मगर कुछ बात है इस चाय में...


कितनी बार अधूरी कहानी ले कर...
अधूरी नज़्म या कोई आगाज़ ले कर...
मैं बैठा हूँ टी-स्टाल के मूडे पे...
और चाय के जायके से बस...
अंजाम मिला है मेरे अफकार को...



कभी तुलसी की महक ...
कभी अदरक का अर्क....
कभी इलायची की खुश्बू
तो कभी काली मिर्च पिसी...
इसमें घुली मिलती है...



इसीलिए इतने ख्याल...
जेहेन आ में पाते हैं शायद...
हाफ कट मसाला चाय...
और मेरी रचनाये हमराज है...



....भावार्थ

hamraaj hain

Saturday, July 17, 2010

अफकार का अफ़सोस !!!

जिंदगी भर मैंने सिर्फ रिश्ते तराशे हैं...
हाथ छिल गए मेरे उकेरते उकेरते ...
वक़्त की हथोडी और प्यार की छैनी...
चारों पहर हवा की तरह चलायी है मैंने ...
एक एक मुजस्समा मुझे जाँ से प्यारा था...
हर एक रिश्ते का चेहरा मैंने ऐसे बनाया था...

मगर मैंने जो भी तराशा शायद सही जगह नहीं रखा...
मैं बुत बनाने मैं इतना मशगूल था...
पता ही ना चला कहाँ रख दिया जो भी तराशा मैंने...
और आज जब उँगलियाँ औजार उठा नहीं सकती...
और पैर मेरे धड को सह नहीं सकते...
सोचता हूँ कोई मुजस्समा आये और थाम ले...


पीछे मुड कर भी देखा कोई नहीं है दूर दूर तक...
तनहा बैठा हूँ वक़्त की बेंच पे...
यही सोच कर की काश कोई बुत आये और साथ ले चले...
मगर मैं भी कितना बेवकूफ हूँ...
जिंदगी भर मुजस्समे तराशे मैंने...
और बुत भी कहीं चलती है भला...
काश जाँ भी फूंकी होती इनमें ...
तो शायद मैं इतना तनहा न होता...
शायद !!!


...भावार्थ

Thursday, July 8, 2010

डर !!!

वो रास्ते मैं जिनपे चली ...
सोच कर की कोई हमसफ़र मिले...
कुछ कदम बढ़ी और लौट आई...
वो हमसफ़र न थे एक परछाई थी...
मैं जिनके साथ चलती रही...
मगर उन रास्तों पे मेरे हौसले...
मेरी चाहतों मेरे अरमानो के निशाँ...
अभी बाकी हैं...
परछाई से साथ गुजरे लम्हों के निशाँ...
अभी बाकी हैं...
मगर आज जब हमसफ़र मिला...
कदमो को राह, हाथो को हम राह मिला...
दिल की बाते कहने को हमराज मिला...
मन को सुकून बेइन्तेआह प्यार मिला...
तो डर लगता है...
वो रास्ते जो मैंने कुछ कदम चले थे...
कहीं आ न मिले मेरी राह से ...
मेरे हमसफ़र मेरे हम राह से...

बस यही डर लगता है...

...भावार्थ