Saturday, October 29, 2011

भावार्थ शैली का आगाज़ !!!

तुम हू-ब-हू मुझसे नज़र आते हो मेरे दोस्त ...
फिर क्यों ...
मुझे भावार्थ और तुमको आईना कहते है लोग...

कब तक युही वक्त जाया करोगे पपीहे ...
इस बार...
थार की तपिश वो इक बूँद भी पी लेगी... 

सदियों को मुट्ठी में कैद कर के बैठा है वक़्त...
और तुम कहते हो..
ये वक़्त बस एक पल में गुज़र जाएगा...

जूनून-ए-इमा से न टकराना हुजूम...
तब भी और आज भी...
सरफरोशी को मुट्ठी भर लोग ने ही अंजाम दिया है...

साज जिनसे कितनी ही रूहें सुनी गयी...
जानते हो...
उन साजो में छुपी शक्लें किसी ने नहीं देखी.

बालिश्त भर खायिशों की जिद्दो-जहद इतनी है तुम्हारे लिए ...
सोचो कुछ थे...
जो सिकंदर बनने का खाब जी गए जिंदगी में... 

भावार्थ


ग़ज़ल !!!

मेरा गम जो बनी ग़ज़ल तो भी अच्छी थी...
वो इज़हार-ए-ख़ुशी बनी  तो भी अच्छी थी...
दो जून का सहारा है मेरे अपनों का ये ग़ज़ल...
मेरे अलफ़ाज़ उनका लुफ्त बनी तो भी अच्छी थी...

गम-ए-दांस्ता पे जिसके लोग वाह-२ किया करते है ...
उसी अभागे  को यहाँ लोग शायर कहा करते हैं...
सदियों में मिला है चंद को मीर-ओ-ग़ालिब का मकाम...
जिसकी खायिश में करोडो शायरी किया करते हैं... 

जो तुमको है  जूनून लिखने और सुनाने का ...
ये शौक है तो बेहतर है कहीं रोजगार न बने ...
बाप दादाओं की साख ले डूबे हैं कुछ सर फिरे...
फिजूली का जायका तुम्हारा अफकार न बने...

मेरा गम जो बनी ग़ज़ल तो भी अच्छी थी...
वो इज़हार-ए-ख़ुशी बनी  तो भी अच्छी थी...
दो जून का सहारा है मेरे अपनों का ये ग़ज़ल...
मेरे अलफ़ाज़ उनका लुफ्त बनी तो भी अच्छी थी...




भावार्थ 




जिंदगी...

मकसद से जो मेरे उफनती है जिंदगी...
उसूलों से वही फिर मेरे डरती है जिंदगी...
आजमाती है  दुनिया की कसौटी पे जुनूँ मेरा...
और ढह जाती है पानी सी फिर वही जिंदगी...

भावार्थ... 

Thursday, October 27, 2011

वेल्डिंग और दिवाली !!!






उजाले की ओट में वो नन्हा सा दिया नहीं दीखता...
पुटाश के शोर में गरीबी का दर्द नहीं चीखता...
सलीम का तो हर दिन ही है चिंगारियों से भरा ...
वेल्डिंग और दिवाली में उसे खास फर्क नहीं दीखता...

कौन अब राम की राह बटोहेगा...
कौन अब मंगल गीत गायेगा...
कौन दीपो से संजोयेगा घर द्वार..
कौन इस महंगाई में दिवाली मनायेगा...

हजारो की मिठाई खायी...
लाखों के पटाखे टूटे...
हुए चंद  खुशनुमा लोग...
करोडो दिल भूख से रूठे...

आज अँधेरे की रौशनी में दिवाली मनाई...
गाँव ने फिर शहर को बिजली  दे दी भाई..
राम का शहर तो पता नहीं मुझे मगर ... 
अयोध्या में लोगो ने सिर्फ मोमबती जलाई...


भावार्थ !!!

Sunday, October 16, 2011

वही कहानी है !!!

राह नयी है लेकिन मंजिल वही पुरानी है...
नए किरदार लिए फिरसे वही कहानी है...
खाब-ओ-ख्याल बस गुबार भर है इंसा के...
और अब पा कर भी कुछ नहीं हासिल...
सदियों से चलती आई युहीं जिंदगानी है... 

भावार्थ 




Saturday, October 15, 2011

उसके इर्द गिर्द !!!

राहत-ए-खुदा है जो गर तो उसके इर्द गिर्द...
चाहत-ए-जिंद  है जो गर  उसके इर्द गिर्द...
न नूर ही देखा , न पत्थर को सजदा...
इबादत है जो मेरी तो उसके इर्द गिर्द ...

भावार्थ 

Thursday, October 13, 2011

झूठी मूटी नींद में देखे !!!

झूठी मूटी नींद में देखे कुछ सपने झूठे मैंने भी...
सच्चे रिश्तो में है देखे कुछ अपने झूठे मैंने भी...
मिटटी की बुत है मिटटी की इस कलियुग में...
पत्थर से है बहते हैं देखे कुछ झरने झूठे मैंने भी...

भावर्थ 

Monday, October 10, 2011

जिंदगी का एक ये नन्हा बुलबुला..




मौत के इर्द गिर्द मचलता रहता है...
जिंदगी का एक ये नन्हा बुलबुला...

साए सा वजूद लिए अपनी धुन में... 
बेफिक्र है मौत के पैने कांटो से...
जिंदगी का एक ये नन्हा बुलबुला...  

खाब का आशियाँ बुना इसने  ...
फिर सपनो को हासिल किया जिसने...
मंजिल-ए-मौत की तरफ बढ़ता...
जिंदगी का एक ये नन्हा बुलबुला...

तकदीर बनाता तामीर उठाता...
कायनात मुठी में लिए फिरता ...
बस रेत से खुद को बहलाता...
जिंदगी का एक ये नन्हा बुलबुला...

जो सच है वो हकीकत नहीं लगती...
जो हकीकत है उसे झूठा कहते हैं सब...
मौत तू झूठी है युही गुनगुनाता जाता...
जिंदगी का एक ये नन्हा बुलबुला..

भावार्थ 






Sunday, October 2, 2011

जाम ऐसा तेरी आँखों से अता हो जाए...

जाम ऐसा तेरी आँखों से अता हो जाए...
होश बाकी  रहे और नशा भी हो जाए...

इस तरह मेरी तरफ मेरा मसीहा देखे...
दर्द दिल ही में रहे और दावा हो जाए..

जिंदगानी को मिले कोई हुनर ऐसा भी...
सब में मौजूद भी हो और फना हो जाए...

मोजजा काश दिखा दे ये निगाहें मेरी...
लफ्ज़ महफूज़ रहे बात अदा हो जाए...

डा. नजहत अंजुम !!!




ये हाल है तो कौन अदालत में जाएगा...

इन्साफ जालिमों की हिमायत में जायेगा...
ये हाल  है तो कौन अदालत में जाएगा...

दस्तार नोंच नाच के एहबाब ले उड़े...
सर बच गया है ये भी शराफत में जायेगा...

दोजख के इंतजाम में उलझा है रात दिन..
दावा ये कर रहा है की जन्नत में जाएगा...

खुशफहमियों की भीड़ में तू  भूल क्यों गया..
पहले मरेगा फिर कहीं जन्नत में जाएगा...

वाकिफ है खूब झूठ के फन से ये आदमी...
ये शख्श एक रोज जरूर शियासत में जायेगा...

राहत इन्दौरी  !!!









इन्साफ जालिमों की हिमायत में जायेगा...
ये हाल  है तो कौन अदालत में जाएगा...

दस्तार नोंच नाच के एहबाब ले उड़े...
सर बच गया है ये भी शराफत में जायेगा...

दोजख के इंतजाम में उलझा है रात दिन..
दावा ये कर रहा है की जन्नत में जाएगा...

खुशफहमियों की भीड़ में तू  भूल क्यों गया..
पहले मरेगा फिर कहीं जन्नत में जाएगा...

वाकिफ है खूब झूठ के फन से ये आदमी...
ये शख्श एक रोज जरूर शियासत में जायेगा...

राहत इन्दौरी  !!!









हमारे कुछ गुनाहों की सजा भी साथ चलती है..

हमारे कुछ गुनाहों की सजा भी साथ चलती है...
हम अब तनहा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है...
अभी जिन्दा है मेरी माँ मुझे कुछ भी नहीं होगा...
जब घर से निकलता हूँ  दुआ भी साथ चलती है...


ये सेहरा  है मियां यहाँ  चालाकी नहीं चलती...
यहाँ मजनू की चल जाती है लैला की नहीं चलती...
टीम यहाँ न ढूढों  कोई लंगड़ा आदमी ...
जहाँ खुद्गार्गी होती है वहां बैसाखी नहीं चलती...

अजब दुनिया है ना-शायर  यहाँ देखो सर उठाते हैं ...
और जो शायर है वो महफ़िल में दरिया उठाते हैं...
तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कान्धा नहीं देते...
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं...

इस तिलिस्म में जो हरा था वो सूखा निकला...
उसकी खिदमत में हर अंदाज़ ही रुखा निकला...
एक निवाले के लिए जिसे मैंने मार दिया...
वोह परिंदा भी कई रोज का भूखा निकला...

मौला ये तमन्ना है जब मैं जान से जाऊं...
जिस शान से आया हूँ उसी शान से जाऊं...

बच्चो की तरह पेड़ की शाखों से कूदूं..
परिंदों की तरह उड़ता खिलायाँ से जाऊं...

हर शब्द महके लिखा हुआ मेरा...
मैं लिपटा हुआ यादो की लोबान से जाऊं...

माँ जिन्दा देखेगी तो चीख पड़ेगी...
पीठ में झकम लिए कैसे मैदान से जाऊं...

खिले हुए फूल का क्या भरोसा..
न जाने कब इस गुल दान से जाऊं...



मुन्नवर राणा 

बड़े अजीब हैं...

दोस्तों की तस्वीर लगाते हुए लोग...
उन्हीं से मिलने को कतराते हुए लोग...
बड़े अजीब हैं...

पत्थर पे सर झुकाते हुए लोग...
बुजुर्गों को न अपनाते हुए लोग..
बड़े अजीब हैं... 

अपने इश्क की कहानी सुनाते हुए लोग...
उसी इक शख्स से झुंझलाते हुए लोग...
बड़े अजीब हैं...

ये लोग जो हम है जो तुम हो...
ये लोग जो पढ़ के फिर भूल जायेंगे...
बड़े अजीब हैं...

भावार्थ