Sunday, April 13, 2014

होश की चारदीवारी !!!

होश की चारदीवारी !!!

दुनिया के खेत के बीचोंबीच
जहाँ मेरे देश की सरहद की पगडण्डी है
उसी देश में मेरे होश की चारदीवारी है
उसमें मेरे नाम का बुजुर्ग दरवाज़ा है
सिर्फ एक लकड़ी का दरवाज़ा
उसपे मेरे मजहब की साँकर है
उसे खोल कर जरा भीतर झाँकोगे
तो उसमें मेरी सोच  का कच्चा आँगन है
बीचों बीच जिसमें श्रद्धा की तुलसी लगी है
वहीँ कौन में कलम टूटे लोटे  की तरह पड़ी है
सोच की बाल्टी जो जेहेन के कुँए पे लटकी है
जब भी डुबकी लगाती है तो निकाल लाती है
अधबुने फीके से पानी से कुछ ख्याल
दुसरे कोने में हर्फ़ का गुड भी है
जब भी मन करता है तो लोटा उठाता हूँ
बाल्टी से पानी और कौने से  गुड मिला कर
बना लेता हूँ कभी शायरी तो कभी ग़ज़ल का शरबत
गम से नमकीन जिंदगी में मिठास गर है तो बस यही
खुद का शुक्र है महफूज़ है इस उम्र तक  …
मेरी होश की चारदीवारी  … मेरी शख्शियत

~ भावार्थ ~







No comments: