Sunday, March 22, 2015

तुझे कैसे इल्म न हो सका बड़ी दूर तक ये खबर गयी

तुझे कैसे इल्म न हो सका बड़ी दूर तक ये खबर गयी
की तेरे ही शहर की शायरा तेरे इंतज़ार में मर  गयी

कोई बात थी कोई था सबब जो मैं वादा  मुकर गयी
तेरे प्यार पर तो यकीन था मैं खुद अपने आप से डर गयी

वो तेरे मिज़ाज़  बात थी ये मेरे मिज़ाज़ की बात है
तू मेरी नज़र से न गिर सका मैं तेरी नज़र से उत्तर गयी

है खुद गवाह तेरे बिना  मेरी ज़िन्दगी तो न कट  सकी
मुझे ये बता कि मेरे बिना  उमर  तेरी कैसे गुज़र गयी

वो सफर को अपने तमाम कर गयी रात आएंगे लौटकर
ये नसीम मैंने सुनी खबर तो मैं शाम से ही संवर गयी

मुमताज़ नसीम !!!












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