Tuesday, June 30, 2015

मुझको यकीं है सच कहती थी

मुझको यकीं है सच कहती थी
जो भी अम्मी कहती थी
जब मेरे बचपन के दिन थे
चाँद में परियां  रहती थी

एक ये दिन अपनों ने भी
हम से नाता तोड़ दिया
एक वो दिन जब पेड़ की साखें
बोझ हमारा सहती थी

जब मेरे बचपन के दिन थे
चाँद में पारियां रहती थी


एक दिन ये जब लाखों गम
और काल पड़ा है आंसूं का
एक वो दिन  जब एक जरा सी
बात पे नदियां  बहती थी

जब मेरे बचपन के दिन थे

चाँद में पारियां रहती थी

जावेद अख्तर 

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